देवउठनी एकादशी व्रत कथा | Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha in Hindi, कार्तिक मास का महत्त्व

  
देवउठनी एकादशी व्रत कथा | Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha in Hindi, कार्तिक मास का महत्त्व

कार्तिक माह शुक्ल पक्ष एकादश को देवउठनी एकादशी, कहते है।और अन्य नामों से भी जाना जाता है जेसे देवउठनी एकादशी, ग्यारस या प्रबोधिनी एकादशी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन प्रभु श्री हरि राजा बली के राज्य से चातुर्मास का विश्राम समर्पण कर के बैकुंठ में लौटे थे। इसी दिन तुलसी विवाह का पर्व भी समाप्त होता है। कार्तिक मास का बहुत ही महत्त्व है इस लेख में सब बताए गए हैं । देवउठनी एकादशी व्रत कथाएं किस तरह प्रचलित हैं लेख में बताया गया है। ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा का महत्त्व दिया गया है
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अर्जुन ने यह कथा श्री कृष्ण से सुनी थी

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे अर्जुन तुम मेरे प्रिय मित्र हो। अब मैं तुम्हें पापों को विनाश करने वाली तथा पुण्य और मुक्ति प्रदान करने वाली प्रबोधिनी एकादशी की कथाएं सुनाता हूँ, श्रद्धापूर्वक श्रवण करो इस विषय में मैं तुम्हें नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप (बातचीत)को सुनाता हूं। एक समय नारद जी ने ब्रह्माजी से पूछा है पितामा परमेश्वर प्रबोधिनी एकादशी के व्रत का क्या फल होता है, कृपा करके आप मुझे यह सब विधानपूर्वक बताएं।

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ब्रह्माजी ने कहा-           हे पुत्र यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष को प्रबोधिनी एकादशी के व्रत रखा जाता है, व्रत का लाभ एक सहस्र अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ के फल के बराबर होता है।

नारदजी ने कहा-        हे  पिता परमेश्वर एक संध्या को भोजन तियाग या रात्रि में भोजन करने तथा पूरे दिन निआहार उपवास करने से किस फल प्राप्ति होती है। कृपा सविस्तार पूर्वक समझाइए’)

जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करती एकादशी व्रत

ब्रह्माजी ने कहा-        हे नारद! एक संध्या (साम) को भोजन करने से दो जन्म के तथा पूरे दिन उपवास करने से सात जन्म के सभी पाप  नष्ट (मिट) जाते हैं। जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से सहज ही प्राप्त होती है। प्रबोधिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से बड़े-से-बड़ा पाप भी क्षण भर में नष्ट हो जाती है। पूर्व जन्म के किए हुए अनेकों बुरे कर्मों को प्रबोधिनी एकादशी का व्रत पल-भर मे नष्ट कर देती है। जो मनुष्य अपने स्वभावानुसार प्रबोधिनी एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करता हैं, उन्हें पूर्ण फल प्राप्त होता है।हे पुत्र! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन किंचीत मात्र पुण्य करते हैं, उनका पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है।जो मनुष्य अपने हृदय के अंदर ही ऐसा ध्यान करते हैं कि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करूंगा,उनके जनमो जन्म के पाप पीरा  नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य प्रबोधिनी एकादशी को रात्री जागरण करते हैं, उनकी बीती हुई तथा आने वाली दस पीढ़ी विष्णु लोक में जाकर वास करती हैं और नरक में  कष्टों को भोगते उनके पितृ विष्णुलोक में जाकर सुख का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।विकट और ब्रह्महत्या जेसे पाप भी प्रबोधिनी एकादशी के दिन रात्री जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं। प्रबोधिनी एकादशी को रात्री जागरण करने का लाभ अश्वमेध आदि यज्ञों के फल से भी ज्यादा की प्राप्ती होता है
अन्य सभी तीर्थों में जा कर गौ, स्वर्ण भूमि आदि वस्तु दान करने का फल प्रबोधिनी रात्री के जागरण के फल प्राप्ति के बराबर होता है। हे पुत्र! इस पृथ्वी पर उसी प्राणी का जीवन सफल है, जिसने प्रबोधिनी एकादशी के व्रत द्वारा अपने कुल को पवित्र किया है। इस धरती पर जितने भी तीर्थ हैं या तीर्थो की आशा की जाती है, वह प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने वाले के घर में ही हैं।मनुष्य को सभी कर्मों को त्यागते हुए भगवान श्री हरी की प्रसन्नता के लिए कार्तिक माह की प्रबोधिनी एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। जो लोग इस एकादशी व्रत को करता है, वह बिक्ती योगी, तपस्वी तथा इंद्रियों को जीतने वाला होता है, क्योंकि विष्णु भगवान की अत्यंत प्रिय है यह एकादशी व्रत। इस के प्रभाव से मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है।

इस एकादशी व्रत के प्रभाव से कायिक, वाचिक और मानसिक तीनों प्रकार के पापों से मुक्त मिलती है। इस एकादशी के दिन जो प्राणी विष्णु भगवान की प्राप्ति के लिए दान होम तप यज्ञ आदि करते हैं, उन्हें अनंत में पुण्य की लाभ होती है। एकादशी के दिन भगवान श्री हरी का पूजा पाठ करने के बाद, यौवन (जवानी) और वृद्धावस्था (बुढ़ापा) के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की रात्रि जागरण करने का फल, सूर्य ग्रहण के समय स्नान करने के लाभ से सहस्र गुना ज्यादा होता है। प्राणी अपने जन्म से लेकर जो पुण्य करता है, वह पुण्य प्रबोधिनी एकादशी के व्रत के पुण्य के सामने व्यर्थ हैं। जो प्राणी यह एकादशी का व्रत नहीं करता, उसके सभी पुण्य व्यर्थ हो जाते हैं।इसलिए हे पुत्र तुम्हें भी विधानपूर्वक नियम निष्ठा से भगवान विष्णु का पूजन अब्श्य करना चाहिए।

कार्तिक मास का महत्त्व इस लिए है।

जो मनुष्य कार्तिक माह के धर्मपरायण होकर अन्य व्यक्तियों का अन्न नहीं खाते, उन्हें चांद्रायण व्रत के लाभ की प्राप्ति मिलती है। कार्तिक माह में प्रभु दान आदि से उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने कि शास्त्रों की कथा सुनने या सुनाने से प्रसन्न होते है। कार्तिक माह में जो मनुष्य भगवान की कथा को थोड़ा-बहुत पढ़ते हैं या सुनते हैं, उन्हें सो गायों के दान के पुण्य की प्राप्ति होती है।

ब्रह्माजी की बात सुनकर नारद जी बोले-         हे पितामह! अब आप एकादशी के व्रत का विधान कहिए और कैसा व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपा यह भी समझाइए।

नारद की बात सुन ब्रह्माजी बोले-                    हे पुत्र इस एकादशी के दिन प्राणी को ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए और स्नानादि से निवृत्त हो कर व्रत का संकल्प ठानना चाहिए। उस समय प्रभु विष्णु से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे भगवण! आज मैं निराहार (उपवास) रहूंगा और दूसरे दिन भोजन करूंगा, इसलिए आप शव्य मेरी रक्षा करें। इस तरह से प्रार्थना करके भगवान का पूजन करना चाहिए और व्रत का शुभारम्भ करना चाहिए। उस रात्रि को भगवान के समीप गायन, नृत्य बाजे तथा भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत (बिताना)चाहिए प्रबोधिनी एकादशी के दिन कृपणता को त्यागकर बहुत से पुष्प,धूप- दीप से पर्भू की आराधना करनी चाहिए। जल भरे शंख से भगवान को अर्घ्य देना चाहिए। इसका फल तीर्थ दान आदि से अती अधिक होता है। प्राणी अगर अगस्त्य पुष्प से भगवान का पूजा करते हैं,तो उनके सामने इंद्र भी प्रणाम करते है। जो मनुष्य बिल्व पत्र से कार्तिक माह में भगवान पूजन करते हैं, उन्हें अंत में पाप से मुक्ति मिलती है।

कार्तिक माह में जो मनुष्य तुलसी जी से भगवान का पूजन करता है, उसके अनेकों जन्मों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।जो बेक्ती कार्तिक माह में श्री तुलसी जी के दर्शन या स्पर्श कर के ध्यान लगा के भजन कीर्तन करते हैं या रोपन (पोधा लगा) कर के सेवा करते हैं, वह लाखो कोटियुग तक विष्णु लोक में वास करते हैं।और उनके कुल में जो पैदा होते हैं, वह प्रलय के अंत तक भगवान विष्णु लोग में रहते हैं। जो बेक्ति प्रभु का पूजन कदंब पुष्प से करते हैं, वह यमराज के कष्टों से मुक्त रहते है । सभी मनो कामनाओं को पूरा करने वाले विष्णु भगवान कदंब पुष्प को देखकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं। कदंब से पूजन किया जाए तो इससे उत्तम बात और नहीं है। गुलाब के पुष्प से भगवान का पूजन करने से उन्हें निश्चित ही फल प्राप्त होती है। जो मनुष्य बकुल और अशोक के फोलो से भगवान का पूजा करते हैं, उन्हें अनंत काल तक शोक से रहित रहते हैं। जो मनुष्य भगवान विष्णु का सफेद और लाल कनेर के फूलों से पूजा पाठ करते हैं, उन पर भगवान अत्यंत प्रसन्न रहते हैं। जो मनुष्य प्रभु श्रीहरि का दूर्वादल ज्ञे पूजन करते हैं, वाह पूजा के फल से कई गुना ज्यादा लाभ पाते हैं। जो भगवान का शमीपत्र से पूजन करते हैं, वह यमराज के मार्ग को सुगमता से पार कर लेते है। अगर चंपक पुष्प से प्रभु का पूजन करते हैं, तो जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिलता हैं।

ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा का महत्त्व

मनुष्य अगर स्वर्ण का बना हुआ केतकी पुष्प भगवान को अर्पित करते हैं, तो उनके जन्म जन्म के पाप मीट जाते हैं। जो मनुष्य पीले और रक्त वर्ण कमल के सुगंधित फोलो प्रभु का पूजन करते हैं, उन्हें श्वेत दीप में जगह मिलता है।
इस प्रकार (रात्रि) रात में भगवान का पूजन करके प्रातःकाल (सुबह) शुद्ध नदी में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के उपरांत भगवान की स्तुति करते हुए घर आकर प्रभु का पूजा अर्चना करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए और दक्षिणा देकर उन्हें प्रसन्नतापूर्वक (खुशी खुशी) विदा करना चाहिए। फिर गुरु की पूजा करनी चाहिए और ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर नियम को छोड़ना चाहिए।
जो मनुष्य रात्रि स्नान करते हैं, उन्हें शहद और दही दान में देना चाहिए।या फल,घी, दूध, अन्नों में चावल दान में देना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत में भूमि पर शयन करते हैं, उन्हें सब वस्तुओं सहित शैया दान में देना चाहिए। जो मौन धारण करते हैं, उन्हें स्वर्ण सहित तिल दान देना चाहिए। जो मनुष्य खड़ाऊं धारण नहीं करते, उन्हें खड़ाऊं दान कर देना चाहिए। जो मनुष्य कार्तिक माह में नमक त्यागते हैं, उन्हें शक्कर दान में देना चाहिए। जो मनुष्य नित्य (रोज़) प्रति देव मंदिरों में दीपक जलाते हैं, उन्हें स्वर्ण या तांबे के दीप को घी तथा बत्ती सांग दान में देना चाहिए।

जो बैक्ती चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें उस दिन से उस वस्तु को पुनः (दुबारा) ग्रहण करना चाहिए। जो लोग प्रबोधिनी एकादशी के दिन विधानपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनंत सुख का लाभ होती है और अंत में स्वर्ग नीबाश में जाते हैं। जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत को बिना खण्डित पूर्ण कर लेते हैं, उन्हें दुबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। जिन मनुष्यों का व्रत चूक जाता है, उन्हें दुबारा प्रारंभ करना चाहिए। जो मनुष्य इस एकादशी के माहात्म्य को सुनते व सुनाते या पढ़ते हैं उन्हें  अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।”

Arjun kashyap

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